स्व. वेणुगोपाल जी की ये पंक्तियाँ बहुत दिनों से दिमाग़ में गूँज रही थीं। सोचा आप सभी से बांटता चलूँ।
"न हो कुछ भी,
सिर्फ़ सपना हो,
तो भी हो सकती है शुरुआत।
और ये शुरुआत ही तो है,
कि वहाँ एक सपना है। "
Monday, November 3, 2008
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शुक्रिया प्रसाद जी. श्री गोपाल जी की एक उम्दा कृति को बांटने के लिए. गुण सर्व गुण. आभार.
ReplyDeleteबहुत आभार इसे हमारे साथ बांटने के लिए.
ReplyDeletevenugopal acche pragatisheel kavi the, ewam vyvhaarikta ke acche stambh bhi...unke dehant ko zyada samay nahin hua,,,ye pankti prastut karne ka dhanywaad...
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