Tuesday, May 13, 2008

The great poet Faiz Ahmed 'Faiz' wrote this nazm on his younger daughter's birthday

इक मुनीज़ा हमारी बेटी है
जो बहुत ही प्यारी बेटी है


फूल की तरह उसकी रंगत है
चाँद की तरह उसकी सूरत है


जब वो ख़ुश हो कर मुस्काती है
चांदनी जग में फैल जाती है


उम्र देखो तो आठ साल की है
अक़्ल देखो तो साठ साल की है


वो गाना भी अच्छा गाती है
ग़रचे तुमको नहीं सुनाती है


बात करती है इस क़दर मीठी
जैसे डाली पे कूक बुलबुल की

हाँ जब कोई उसको सताता है
तब ज़रा ग़ुस्सा आ जाता है

पर वो जल्दी से मन जाती है
कब किसी को भला सताती है

है शिगुफ्ता बहुत मिज़ाज उसका
उम्दा है हर काम काज उसका

है मुनीज़ा की आज सालगिरह
हर सू शोर है मुबारक का

चाँद तारे दुआएं देते हैं
फूल उसकी बलायें लेते हैं

गा रही बाग़ में ये बुलबुल
“तुम सलामत रहो मुनीज़ा गुल”

फिर हो ये शोर मुबारक का
आये सौ बार तेरी सालगिरह

सौ क्या सौ हज़ार बार आये
यूँ कहो के बेशुमार आये

लाये अपने साथ ख़ुशी
और हम सब कहा करें यूँ ही

ये मुनीज़ा हमारी बेटी है
ये बहुत ही प्यारी बेटी है

1 comment:

  1. वात्सल्य में पोर-पोर डूबी फैज़ की बेहतरीन कविता .

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