साम्राज्यवाद की दलाल भारत सरकार बेशक़ लगातार ये दावा करती रही है कि वैश्विक महामंदी का असर अपने देश पर नहीं पड़ने दिया जायेगा, मगर भारत सरकार के ही श्रम मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2009 तक क़रीब 15 लाख लोग सूचना प्रौद्योगिकी, निर्यात उद्योग तथा अन्य सेवाओं का अपना प्राप्त रोज़गार खो चुके होंगे. यही नहीं भारतीय उत्पादों की अमेरिका तथा यूरोप में माँग गिर जाने के कारण 5 लाख लोगों का रोज़गार और ध्वस्त होने वाला है. औसत विकास दर 9% से घाट कर 5% पर खिसकने की पूरी संभावना है. ये घटती विकास दर, बढ़ती बेरोज़गारी बताती है कि महामंदी की लपटों में भारत भी पूरी तरह झुलसने जा रहा है. 10 फ़रवरी 2009 को महाराष्ट्र के श्रममंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर राज्य सरकार को सूचित किया की इस वर्ष 15 लाख लोगों को अपनी नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. ऐसी स्थितियों में जहाँ जन असंतोष,दलाल सरकारों को बेनक़ाब कर हमेशा हमेशा के लिए उखाड़ फेंकने में काम आ सकता है, वहीं प्रतिक्रियावादी ताक़तें उन्हे उत्तर भारतीय, स्थानीय, आदि आदि में बाँट कर आपस में भिड़वाती हैं, जबकि असल समस्या साम्राज्यवादी भूमंडलीकरण, निजीकरण तथा उदारीकरण की वजह से है. अपनी रोज़मर्रा की आपाधापी से थोड़ा समय निकाल कर, हम अपना सामाजिक दायित्व निभाते हुए कुछ चिंतन करें।
'साम्राज्यवाद और आज का भारत' विषय पर एक चिंतन.
शिविर दिनांक - 21 मार्च 2009, सायं 5 बजे,
स्थान - YWCA, नवरंग सिनेमा के पास,अंधेरी पश्चिम,मुंबई।
मुख्या वक्ता - प्रॉफ़ेसर जगमोहन सिंह ( शहीद भगत सिंह के भान्जे)
संपर्क - +91 9871215875, +91 9819428425
Thursday, March 19, 2009
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भारत सरकार साम्राज्यवाद में हिस्सेदार बनने के लिए उस की सेवक जरूर बन गई है लेकिन उसे दलाल कहना एक गलत मूल्यांकन है जो आप को गलत नतीजों पर ले जा सकता है।
ReplyDeletenice
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