Wednesday, May 27, 2009

मेघदूत का झांकता सूरज

किसी काम के सिलसिले में महाबलेश्वर गया था। वहाँ पहुँच कर काम धाम तो भूल गया अपने कमरे से इस प्राकृतिक छटा का आनंद लेने लग गया... अपनी ली हुई तस्वीरें आप सभी से बाँटना चाहता हूँ । अनायास ही 'मेघदूत' के यक्ष की पीड़ा हूक बन कर उठती है... यक्ष मेघ से कहता है कि हे मेघ, देखो यहाँ सामने वाल्मिक के सिरों से इन्द्रधनुष निकल रहा है जो कई रत्नों के मेल से निर्मित कान्तिपुन्ज की तरह है। यहाँ इन्द्रधनुष बाँबी से निकलता है और अपनी बाँकी उठान से अन्तरिक्ष को घेर लेता है।










आपकी प्रतिक्रया की प्रतीक्षा रहेगी।




3 comments:

  1. सुन्दर चित्र! आषाढ़ मास ज्येष्ठ में ही अधिक स्मरण आता है। लगता है आप ने स्वागत कर दिया है। केरल में मानसून आ चुका है।

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  2. सुन्दर तस्वीरें, आभार.

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