Tuesday, August 11, 2009

मुक्ति


सलाख़ों को हम गुलबदन देखते हैं,

नवा-ए-बलाबिल सुख़न देखते हैं,

ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी?

कफस में फ़ज़ा-ए-चमन देखते हैं.


- हर्ष


( गुलबदन - फूलों जैसी नर्म, बलाबिल - बुलबुल का बहुवचन, नवा-ए-बलाबिल - पिंजरे में बंद पक्षियों का आर्त्तनाद, सुख़न - काव्य, पैहम - निरंतरता, ख़ुशख़रामी - सुंदर चाल, ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी - निरंतर सुंदर गति से आती हुई विचार श्रृंखला का ये असर , कफस - पिंजरा, फ़ज़ा-ए-चमन - उपवन जैसा वातावरण. )

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