सलाख़ों को हम गुलबदन देखते हैं,
नवा-ए-बलाबिल सुख़न देखते हैं,
ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी?
कफस में फ़ज़ा-ए-चमन देखते हैं.
- हर्ष
( गुलबदन - फूलों जैसी नर्म, बलाबिल - बुलबुल का बहुवचन, नवा-ए-बलाबिल - पिंजरे में बंद पक्षियों का आर्त्तनाद, सुख़न - काव्य, पैहम - निरंतरता, ख़ुशख़रामी - सुंदर चाल, ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी - निरंतर सुंदर गति से आती हुई विचार श्रृंखला का ये असर , कफस - पिंजरा, फ़ज़ा-ए-चमन - उपवन जैसा वातावरण. )
bahut badhiyaa
ReplyDeletelलाजवाब बधाई
ReplyDeleteसुंदर!
ReplyDelete