Wednesday, May 27, 2009

मेघदूत का झांकता सूरज

किसी काम के सिलसिले में महाबलेश्वर गया था। वहाँ पहुँच कर काम धाम तो भूल गया अपने कमरे से इस प्राकृतिक छटा का आनंद लेने लग गया... अपनी ली हुई तस्वीरें आप सभी से बाँटना चाहता हूँ । अनायास ही 'मेघदूत' के यक्ष की पीड़ा हूक बन कर उठती है... यक्ष मेघ से कहता है कि हे मेघ, देखो यहाँ सामने वाल्मिक के सिरों से इन्द्रधनुष निकल रहा है जो कई रत्नों के मेल से निर्मित कान्तिपुन्ज की तरह है। यहाँ इन्द्रधनुष बाँबी से निकलता है और अपनी बाँकी उठान से अन्तरिक्ष को घेर लेता है।










आपकी प्रतिक्रया की प्रतीक्षा रहेगी।




Monday, May 25, 2009

मेरी शंकाएँ

हममें से बहुतों के धर्म के स्रोत और उसकी उत्पत्ति के प्रति अपने अपने सिद्धांत और मत हैं। ये मत कहाँ से उत्पन्न हुए और मानव संस्कृति ने इन्हें क्यों ग्रहण कर लिया? कुछ तो है जो हमें इन धार्मिक धारणाओं से मिलता है, जैसे, ढाढ़स, आश्वासन, तसल्ली, धैर्य, दिलासा, आदि आदि। ये मान्यताएं अलग अलग गुटों में निजी भाईचारे और मैत्री को भी प्रखरता से दर्शाती हैं। अपने अस्तित्व में आने के कारण को जानने की उत्सुकता को भी ये धारणाएं संतुष्ट और शांत करती हैं। फिर भी मेरी कुछ पूर्ववर्ती शंकाएँ हैं... ऐसा क्यों हैं की आज तक कोई धार्मिक मान्यता विज्ञान की ओर देख कर इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँची कि ब्रह्माण्ड, जैसा हमारे ईश्वर्दूतों, पैग़मबरों ने सोचा था, वैज्ञानिक आधार पर उससे कहीं ज़्यादा विशाल, भव्य, गूढ़ और मनोहर है। पर नहीं.... हमारे इश्वर, अल्लाह जैसे थे वैसे ही रहेंगे...! और हम चाहते हैं कि वो वैसे ही रहें। ... ब्रह्माण्ड के कोनों में छिपे वैभव को उजागर करके उसका जितना सम्मान आधुनिक विज्ञान कर सकता है, हमारी पारंपरिक धार्मिक आस्थाओं की बंद आँखें हमें वहां पहुँचने तक नहीं देतीं ।

Saturday, May 23, 2009

टिप्पणियों पर टिप्पणी

chhammakchhallo kahis Blog की एक प्रविष्टि 'हमारे देवी-देवताओं के जननेंद्रिय नहीं होते' पर की गयी टिप्पणियों पर एक टिपण्णी. मेरे प्रश्न श्री रजनीश परिहार और डॉ अनुराग जी की टिप्पणी से उपजे हैं। मुझे सच्चिदानंद जी के मौलिक काव्य ( जिस पर विभा जी ने बेहद सार्थक लेख लिखा है) के गुणों और अवगुणों से फि़लहाल कोई सरोकार नहीं। मैं पूछना चाहता हूँ कि.... क्या एक शिल्पकार के लिए अपनी कृति के प्रत्येक अंग एक समान नहीं होते?... क्या किसी शिल्प की जननेंद्रियाँ गढ़ते वक़्त उसकी मानसिकता बदल जाती है?... क्या वोह भी सृजन करते समय हम आलोचकों की तरह मानसिक रूप से सामाजिक अनुबंधनों से जकड़ा हुआ होता है?... क्या उसे भी अपनी कलात्मक व्याख्या को धार्मिक संकीर्णता की परिधि में सीमाबद्ध रखना चाहिए?... इन प्रश्नों को नकार कर हम विद्यापति के गीतों को जला क्यों नहीं देते?

Wednesday, May 20, 2009

बेचारा अवसरवादी लालू

Rashtriya Janata Dal (RJD) chief and Railway Minister Lalu Prasad Yadav at a function to mark the 125th birth anniversary of India’s first President Dr. Rajendra Prasad in Patna on Sunday used the occasion to attract the Kayastha community in the presence of some eminent Kayasthas of Bihar.
Ram Kripal Yadav, the RJD MP, also praised the Kayastha community for their support to Lalu Prasad Yadav saying even Jai Prakash Narain, the architect of the ’70s revolt against the Emergency, trusted him to bring drastic change in the nation.

Lalu said “With your mighty pen and my lathi, we can overcome many hurdles in the state and bring prosperity and peace for all.” Yadav, who once coined the term ‘Bhura Baal’ to express his dislike for Bhumihar, Rajput, Brahman, and Lala (the Kayasthas) to solidify his voting base with Muslims and Yadavs otherwise known as the famous MY equation.

Thursday, May 14, 2009

क्या है किसी अबोध बच्चे का धर्म?

कहीं किसी वक़्त बात करते करते मेरे मुंह से किसी एक बच्चे के लिए निकल पड़ा कि 'फलां फलां का illegitimate child (अवैध संतान) है'। मेरे बड़े भाई ने टोका 'बच्चा illegitimate (अवैध) है या उसके माँ बाप? ख़बरदार जो कभी किसी बच्चे को illegitimate (अवैध) कहा।' बात घर कर गयी। किसी अबोध को क्या मालूम अपने अस्तित्व में आने का कारण और परिस्थितियाँ.... फिर भी सामाजिक प्रथानुसार उससे सारी उम्र जताया जाय कि वो अवैध है, ये कहाँ तक उचित है....? इसी सन्दर्भ में अब आते हैं जाती प्रथा पर। आये दिन जो सुनने में आता है कि 'फलां बच्चा मुसलमान है' या 'फलां बच्चा हिन्दू या इसाई है'। क्या उस बच्चे को ये मालूम है कि वो किस धर्म का है? उसके माँ बाप हिन्दू, मुसलमान, इसाई या किसी भी धर्म के अनुयायी हो सकते हैं, पर क्या किसी अबोध मन पर ये बोझ डालना तर्कसंगत है? कोई भी बच्चा, किसी भी धर्म के मानने वाले माता पिता की संतान हो सकता है, पर विज्ञान हमें बताता है कि मान्यताएं आनुवंशिक (genetic) नहीं होतीं.