Sunday, August 23, 2009

उल्लुओं से क्षमा याचना सहित...




एक पुरानी कहावत है कि 'जिस बाग़ में एक भी उल्लू डेरा डाल ले वो बाग़ सूख जाता है'। एक शेर अर्ज़ है -
बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है,
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है, अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा.

Wednesday, August 19, 2009

डॉ कलाम और शाहरुख़ खान

हालाँकि ये मुद्दा पुराना हो चुका है फिर भी....



























कह रहा है दरिया से समंदर का सुकूत,

जिसका जितना ज़र्फ़ है उतना वो ख़ामोश है।


( सुकूत - ख़ामोशी, ज़र्फ़ - सामर्थ्य, दिमाग़, क़ाबिलियत )

- इक़बाल

Friday, August 14, 2009

बाँके बिहारी


ऐ बाँके बिहारी, आओ, लोग आपस में लड़ कर मर रहे हैं. उनमे से बहुत से हैं जो तुम में आस्था रखते हैं, और जिन्हें कोई भी आस्था बचा नहीं पा रही. बहुत से जो बचा लिए जा रहे हैं, उनसे तुम्हारा कोई लेना देना नहीं, न बचने वालों का, न बचाने वालों का. ऐसा क्यों हैं बाँके बिहारी? अपने नाम पे लड़ते, कटते और मरते हुओं के बीच पैदा होना और अपना जन्मदिन मनाना कैसा लग रहा है?..चलो हम भी आस्थावानों की तरह रस्म अदायगी कर ही दें...Happy Birthday बाँके बिहारी.

Tuesday, August 11, 2009

मुक्ति


सलाख़ों को हम गुलबदन देखते हैं,

नवा-ए-बलाबिल सुख़न देखते हैं,

ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी?

कफस में फ़ज़ा-ए-चमन देखते हैं.


- हर्ष


( गुलबदन - फूलों जैसी नर्म, बलाबिल - बुलबुल का बहुवचन, नवा-ए-बलाबिल - पिंजरे में बंद पक्षियों का आर्त्तनाद, सुख़न - काव्य, पैहम - निरंतरता, ख़ुशख़रामी - सुंदर चाल, ख़यालात-ए-पैहम की ये ख़ुशख़रामी - निरंतर सुंदर गति से आती हुई विचार श्रृंखला का ये असर , कफस - पिंजरा, फ़ज़ा-ए-चमन - उपवन जैसा वातावरण. )