Saturday, October 4, 2008

बद्तमीज़ी की इन्तिहा या ओहदे का गुमाँ

एक ब्लॉग 'क़ुन' http://namiraahmad.blogspot.com/ के आख्रीरी पोस्ट पर आप सबका तवज्जो चाहूंगा। उन्वान है 'ये तो बद्तमीज़ी की इन्तिहा है' मज़मून कुछ यों है-

"मध्य प्रदेश के सम्माननीय सांसद को रेलवे पुलिस के जवानों ने लहू लुहान कर दिया ! यह देख /सुन कर बहुत दुःख हुआ ! सांसद किसी भी दल के सदस्य हों उनका सम्मान जनता के प्रतिनिधि का सम्मान और उनकी बेइज्जती जनता की बेइज्जती है !
पुलिस कर्मी जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का सलूक करते हैं तो साधारण जनता के प्रति उनके रवैये को बखूबी समझा जा सकता है !
लोकतान्त्रिक देश के नागरिक ( अदना ही सही ) की हैसियत से हमारा मानना है कि
ये तो बद्तमीजी की इन्तहा है !"

मेरी प्रतिक्रया -

"सांसद हों या आम जनता, किसी के साथ की गयी बदतमीज़ी मंज़ूर नहीं होनी चाहिए. लेकिन किसी भी सांसद का पुलिस से पिट जाना इसलिए बदतमीज़ी है क्योंकि वो सांसद है या जनता का नुमाइंदा है, किसी भी दलील से खरा नहीं उतरता. मेरा ख़्याल है कि अगर जनता भी कोई तहज़ीब का दायरा तोड़े तो उसके नुमाइंदे को ही ज़िम्मेदार ठहराना चाहिए. ऐसी बहुत सी मिसालें हमारे पास हैं और हम आए दिन देखते जा रहे हैं जहाँ ये नुमाइंदे आवाम को भड़का कर हमारा जीना हराम कर रहे हैं, और अपने सांसद या उसी जनता के बदौलत नेता होने का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हैं. आपके चहेते सांसद क्यों पिट गये इससे मेरा कोई सरोकार नहीं, लेकिन उनके ओहदे की दुहाई न दें और अगर वो आम जनता की नुमाइंदगी कर रहे हैं, तो उन्हे ही पीटना जायज़ होगा."

3 comments:

  1. हम भी अपनी प्रतिक्रिया वहीं दर्ज कर आये हैं.

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  2. "सांसद हों या आम जनता, किसी के साथ की गयी बदतमीज़ी मंज़ूर नहीं होनी चाहिए"

    सही कहा..

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