Tuesday, October 28, 2008

हम और हमारा 'बुर्क़ा'

हिन्दुस्तान के विभाजन के वक़्त हिंदू मुस्लिम के बीच भड़के दंगों में दस लाख लोग मारे गये और पंद्रह लाख लोग बेघर हुए। मारने वालों और मरने वालों का सिर्फ़ एक कारण था - 'धर्म'। उन्हे विभाजित करने वालों के सिरों पर सिर्फ़ एक 'लेबल' था - 'धर्म'। क्या हम वाक़ई विवेकी, बुद्धिसंगत, युक्तिमूलक हैं? या बुर्क़ा ( Burqa - the narrow window of 'Light') जैसी चीज़ पहन कर, ख़ुद को अन्धकार में रखना चाहते हैं?

1 comment:

  1. जी नहीं, हमारे बुर्के हमें ढंके या न ढंके हमारी बुद्धि, तर्क व विवेक को अवश्य इतने अच्छे से ढक देते हैं कि प्रकाश की एक किरण भी अन्दर आने का दुस्साहस न कर पाए ।
    आपको सपरिवार दीपावली की शुभकामनाएं ।
    घुघूती बासूती

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