कल मैनें १९५० के नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार और महान चिंतक बर्ट्रंन्ड रस्सेल के विचार अनूदित कर के आपके सामने रखे थे, आज १९२५ में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित जॉर्ज बर्नार्ड शॉ के शब्द आपके सामने रख रहा हूँ।
"The fact that a believer is happier than a skeptic is no more to the point than the fact that a drunken man is happier than a sober one."
-George Bernard Shaw
"ये कहना कि धर्म में आस्था और विश्वास रखे वाला किसी संदेही (अविश्वासी या संशयी) से ज़्यादा ख़ुश है, ये कहना होगा जैसे कोई मद्यप (शराबी) किसी संयमी परहेज़गार से ज़्यादा ख़ुश है।"
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सही कहा है साहिब!
ReplyDeleteयही तो कार्ल मार्क्स ने सीधे सीधे कहा था कि धर्म अफीम है।
ReplyDeleteफर्क सिर्फ जैसे उस ने कहा हो कि दुनिया के आधे लोग मूर्ख हैं और शॉ कह रहे हों कि आधे लोग बुद्धिमान हैं।
मैं ग़लत सोचता था कि बर्नार्ड शा एक समझदार व्यक्ति थे.
ReplyDeleteगुप्ता जी, अगली प्रविष्टी में मेरा जवाब पढ़ लीजिये.
ReplyDeleteमैंने आपकी राय पढ़ी. हो सकता है एमर्सन और शा बहुत महान हों, पर में उन की धर्म पर राय को एक नासमझी मानता हूँ.
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