Wednesday, September 10, 2008

जिब्रील और इब्लीस,

इस्लाम में जिब्रील एक फ़रिश्ते हैं जो रहमत यानी अनुकम्पा देने वाले हैं और इब्लीस जो पहले तो फ़रिश्ता थे लेकिन ख़ुदा की बात न मानने (अवज्ञा) की वजह से बतौर सज़ा (दंड स्वरुप) शैतान क़रार कर दिए गए। माना जाता है कि यही इब्लीस लोगों से ग़लत और काफिराना (दुष्कर्म) काम करवाते हैं। मुलाहिज़ा हो इस क़िस्से के मुत्तालिक़ (सम्बंधित) इक़बाल का नज़रिया -

जिब्रील इब्लीस से -

खो दिये इंकार से तूने मक़ामाते-बुलंद,
चश्मे-यज़्दाँ में फरिश्तों की रही क्या आबरू?

इब्लीस जिब्रील से-

देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर,
कौन तमाचे खा रहा है, तू कि मैं,

खिज्र भी बे-दस्त-ओ-पा, इलियास भी बे-दस्त-ओ-पा,
मेरे तूफाँ यम-ब-यम, दरिया-ब-दरिया, जू-ब-जू,

गर कभी खल्वत मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह से,
क़िस्सा-ए-आदम को रंगीं कर गया किसका लहू,

मैं खटकता हूँ दिल-ए-यज़्दाँ में कांटें की तरह,
तू फ़क़त अल्लाह तू, अल्लाह तू, अल्लाह तू!

(मक़ामात-ए-बुलंद - उच्च स्थान। चश्म-ए-यज़्दाँ - ख़ुदा की नज़र में। आबरू - इज्ज़त। फ़क़त - केवल। साहिल - किनारा। रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर - अच्छाई और बुराई की जंग। खिज्र और इल्यास - वोह पैग़म्बर जो सही रास्ता दिखाते हैं। बे दस्त-ओ-पा - बिना हाथ पैर के, विवश, अपाहिज , निष्क्रिय। यम-ब-यम,दरिया-ब-दरिया,जू-ब-जू - हर नदी नाले में, हर जगह। खल्वत - अँधेरा, मुसीबतें। मयस्सर - मिले। क़िस्सा-ए-आदम - मानव कथा, लोगों का हाल। दिल-ए-यज़्दाँ - ख़ुदा के दिल में। अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू - अल्लाह वही है, वही है, वही है.)

1 comment:

  1. खूब रही !
    कुछ समझा कुछ समझ न पाया .

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