Friday, September 26, 2008

राजनैतिक बातें कैसे की जाएँ- पाठ १

धड़ल्ले से बिना सन्दर्भ के बातें कीजिये -

जैसे इन्होने सुझाया है (http://jagritimanch.blogspot.com/) -

( सभी प्रश्नों का संकलन सम्प्रति -
http://jagritimanch.blogspot.com/ )

स्वयं का आंकलन कीजिये -
(आंकलन विधि मेरे व्यग्तिगत अनुभवों पर आधारित है )

अगर आप इनमें से धड़ल्ले से बोल सकते हैं -


५ मुद्दों तक - तो आप हैं मुहल्ले के नेता
५ से ८ - पार्टी टिकट के संभावित उम्मीदवार
८ से १२ - राष्ट्रीय नेता की छवि के हक़दार
१२ से १७ - प्रधान मंत्री से लेकर किसी TV channel के प्रवचनकर्ता बनने योग्य।

(अगर इनसे भी अधिक ऐसे ही मुद्दों पर आप धड़ल्ले से बोल सकते हैं तो आपको ये पाठ सीखने की आवश्यकता नहीं है, आप नरेंद्र मोदी, प्रवीण तोगड़िया, विनय कटियार, सय्यद शाहबुद्दीन या बुख्रारी से संपर्क करें )

( बिना सन्दर्भ के कही गयी ये निम्नलिखित बातें ऊटपटांग लगेंगी, तो क्या हुआ, नेता बनना है कि नहीं ? )


"Quote-

क्या आप धर्मनिरपेक्ष हैं ? जरा फ़िर सोचिये और स्वयं के लिये इन प्रश्नों के उत्तर खोजिये.....

१. विश्व में लगभग ५२ मुस्लिम देश हैं, एक मुस्लिम देश का नाम बताईये जो हज के लिये "सब्सिडी" देता हो ?

२. एक मुस्लिम देश बताईये जहाँ हिन्दुओं के लिये विशेष कानून हैं, जैसे कि भारत में मुसलमानों के लिये हैं ?

३. किसी एक देश का नाम बताईये, जहाँ ८५% बहुसंख्यकों को "याचना" करनी पडती है, १५% अल्पसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिये ?

४. एक मुस्लिम देश का नाम बताईये, जहाँ का राष्ट्रपति या प्रधानमन्त्री गैर-मुस्लिम हो ?

५. किसी "मुल्ला" या "मौलवी" का नाम बताईये, जिसने आतंकवादियों के खिलाफ़ फ़तवा जारी किया हो ?

६. महाराष्ट्र, बिहार, केरल जैसे हिन्दू बहुल राज्यों में मुस्लिम मुख्यमन्त्री हो चुके हैं, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मुस्लिम बहुल राज्य "कश्मीर" में कोई हिन्दू मुख्यमन्त्री हो सकता है ?

७. १९४७ में आजादी के दौरान पाकिस्तान में हिन्दू जनसंख्या 24% थी, अब वह घटकर 1% रह गई है, उसी समय तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब आज का अहसानफ़रामोश बांग्लादेश) में हिन्दू जनसंख्या 30% थी जो अब 7% से भी कम हो गई है । क्या हुआ गुमशुदा हिन्दुओं का ? क्या वहाँ (और यहाँ भी) हिन्दुओं के कोई मानवाधिकार हैं ?

८. जबकि इस दौरान भारत में मुस्लिम जनसंख्या 10.4% से बढकर 14.2% हो गई है, क्या वाकई हिन्दू कट्टरवादी हैं ?


९. यदि हिन्दू असहिष्णु हैं तो कैसे हमारे यहाँ मुस्लिम सडकों पर नमाज पढते रहते हैं, लाऊडस्पीकर पर दिन भर चिल्लाते रहते हैं कि "अल्लाह के सिवाय और कोई शक्ति नहीं है" ?

१०. सोमनाथ मन्दिर के जीर्णोद्धार के लिये देश के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिये ऐसा गाँधीजी ने कहा था, लेकिन 1948 में ही दिल्ली की मस्जिदों को सरकारी मदद से बनवाने के लिये उन्होंने नेहरू और पटेल पर दबाव बनाया, क्यों ?

११. कश्मीर, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय आदि में हिन्दू अल्पसंख्यक हैं, क्या उन्हें कोई विशेष सुविधा मिलती है ?

१२. हज करने के लिये सबसिडी मिलती है, जबकि मानसरोवर और अमरनाथ जाने पर टैक्स देना पड़ता है, क्यों ?

१३. मदरसे और क्रिश्चियन स्कूल अपने-अपने स्कूलों में बाईबल और कुरान पढा सकते हैं, तो फ़िर सरस्वती शिशु मन्दिरों में और बाकी स्कूलों में गीता और रामायण क्यों नहीं पढाई जा सकती ?

१४. गोधरा के बाद मीडिया में जो हंगामा बरपा, वैसा हंगामा कश्मीर के चार लाख हिन्दुओं की मौत और पलायन पर क्यों नहीं होता ?

१५. क्या आप मानते हैं - संस्कृत सांप्रदायिक और उर्दू धर्मनिरपेक्ष, मन्दिर साम्प्रदायिक और मस्जिद धर्मनिरपेक्ष, तोगडिया राष्ट्रविरोधी और ईमाम देशभक्त, भाजपा सांप्रदायिक और मुस्लिम लीग धर्मनिरपेक्ष, हिन्दुस्तान कहना सांप्रदायिकता और इटली कहना धर्मनिरपेक्ष ?

१६. अब्दुल रहमान अन्तुले को सिद्धिविनायक मन्दिर का ट्रस्टी बनाया गया था, क्या मुलायम सिंह को हजरत बल दरगाह का ट्रस्टी बनाया जा सकता है ?

१७. एक मुस्लिम राष्ट्रपति, एक सिख प्रधानमन्त्री और एक ईसाई रक्षामन्त्री, क्या किसी और देश में यह सम्भव है ?


- unquote"

इस पाठ को याद करके कल आइयेगा। ये 'Objective Type' सवालात नहीं हैं, जो IAS जैसे अफ़सरान को चुनने के लिए ऊल-जलूल इम्तहान में पूछे जाते हैं।

Thursday, September 25, 2008

ब्लॉगर सम्प्रदाय, मुझे सहयोग चाहिए

ब्लॉग की दुनियाँ में घूमते घूमते एकाएक ऐसे ब्लॉग में दाख़िल हो गया जिसने मेरी आंखें खोल के रख दीं। ब्लॉग के शौक़ीन, हर उस सोचने वाले से प्रार्थना है कि उस ब्लॉग पर ज़रूर जाये और मानवता के भले के लिए उन हज़रत के मार्गदर्शन से लाभ उठाये। भारत में समाज सेवा की ओर उठा ये मेरा पहला क़दम है कृपया सहयोग दें। इन हज़रत के कई ब्लॉग हैं जिनमें से कुछ का URL है -http://hinduweb.blogspot.com/ और http://bighindu.blogspot.com/ । ये सज्जन बिहार के रहने वाले हैं और आधुनिक भारतीयता इनमें कूट कूट कर भरी हुयी है, जो अनुकर्णीय है। अगर हम और आप इनके साथ न हुए तो और कौन होगा ? बिहार प्रांत के डॉ राजेन्द्र प्रसाद, जय प्रकाश नारायण जैसे विचारकों के उत्तराधिकारी अब हम हिन्दुस्तानियों को मिल गए हैं। हमें ख़ुश होना चाहिए। उनके एक पोस्ट का परिचय दूँ , शीर्षक है " गोधरा का सच सामने आया" -

"२५ सितम्बर को नानावटी कमीसन की रिपोर्ट आने के बाद यह तय हो गया की गोधरा मे साबरमती एक्सप्रेस मे रामसेवक जलाये गए थे । पहले के कार्यक्रम के अनुसार मुस्लिमो ने रामसेवक को जला कर मार डाला । लेकिन जब इस पर राजनीती सुरु हुए तो कहा गया की आग अन्दर से लगाई गई थी । मुस्लिम वोट के भूखे लालू यादव ने रेलवे के माध्यम से एक आयोग बनाया जिसने बहुत कम समय मे चमचे की तरह ऐसे रिपोर्ट पेश की जिसकी बाते किसी के गले नही उतरी । उसने कहा की आग अन्दर से लगाई गई थी । नानावटी आयोग की रिपोर्ट के बाद देश को यह जान लेना चाहिये की वोट के लिए हिदू समुदाय के ही नेता इसे बेचने मे कोई कसर नही छोड़ते है । मामले मे नरेन्द्र मोदी फिर विजई बन कर सामने आए है ।"

इस पोस्ट पर इस ग़रीब ने एक टिप्पणी डाली -

"मान्यवर,
तनिक 'हिंदू' शब्द, जिसकी महिमा का आप इतना गुणगान अपने ब्लॉग और नरेंद्र मोदी के माध्यम से कर रहे हैं, उसके अर्थ और इतिहास से मुझे अवगत करा दें, कृपा होगी। अगर नरेंद्र मोदी भी इस पर कुछ प्रकाश डाल सकें (जिसमें मुझे संदेह है) तो और भी कृपा होगी.
इस दीन याचक का नाम हर्ष है।"


उनके जवाब का इंतज़ार है। तब तक आप मुझे भारत की समृद्धि के लिए अपना सहयोग दें, उनके ब्लॉग पर ज़रूर जायें।

Wednesday, September 24, 2008

शैख़-ओ-पंडित ने भी क्या अहमक़ बनाया है हमें

'जोश' की क़लम से -

'दीन-ए-आदमीयत'

ये मुसलमाँ है, वो हिन्दू, ये मसीही, वो यहूद
इस पे ये पाबन्दियाँ हैं, और उस पर ये क़यूद
( पाबन्दियाँ, क़यूद - बंधन)

शैख़-ओ-पंडित ने भी क्या अहमक़ बनाया है हमें
छोटे छोटे तंग ख्नानों में बिठाया है हमें

क़स्र-ए-इन्सानी पे ज़ुल्म-ओ-जहल बरसाती हुई
झंडियाँ कितनी नज़र आती हैं लहराती हुई
(क़स्र-ए-इन्सानी - मानवता के महलों पर , ज़ुल्म-ओ-जहल - अत्याचार और मूढ़ता )

कोई इस ज़ुल्मत में सूरत ही नहीं है नूर की
मुहर हर दिल पे लगी है इक-न-इक दस्तूर की
(ज़ुल्मत - अँधेरा , नूर -प्रकाश, दस्तूर - जातीय या धर्म संबन्धी रिवाज)

घटते-घटते मेह्रे-आलमताब से तारा हुआ
आदमी है मज़हब-ओ-तहज़ीब का मारा हुआ
(मेह्रे-आलमताब - दुनियाँ को प्रकाशमान करने वाला , मज़हब-ओ-तहज़ीब - धार्मिक रीति रिवाजों )

कुछ तमद्दुन के ख़लफ़, कुछ दीन के फ़र्ज़न्द हैं
कुलज़मों के रहने वाले, बुलबुलों में बंद हैं
(तमद्दुन - संस्कृति। ख़लफ़ - संतान, औलाद। दीन - धर्म। फ़र्ज़न्द - पुत्र, बेटे। कुलज़मों - समुद्रों)

क़ाबिल-ए-इबरत है ये महदूदियत इंसान की
चिट्ठियाँ चिपकी हुई हैं मुख़्तलिफ़ अदयान की
(क़ाबिल-ए-इबरत - सीखने योग्य, महदूदियत - संकीर्णता, मुख़्तलिफ़ - भिन्न भिन्न, अदयान - मज़हबों की )

फिर रहा है आदमी भूला हुआ भटका हुआ
इक-न-इक लेबिल हर इक के माथे पे है लटका हुआ

आख़िर इन्साँ तंग साँचों में ढला जाता है क्यों
आदमी कहते हुए अपने को शर्माता है क्यों

क्या करे हिन्दोस्ताँ, अल्लाह की है ये भी देन
चाय हिंदू, दूध मुस्लिम, नारियल सिख, बेर जैन

अपने हमजिन्सों के कीने से भला क्या फ़ायदा
टुकड़े-टुकड़े हो के जीने से भला क्या फ़ायदा
(हमजिन्सों - साथी मनुष्यों, कीने - द्वेष )

- शबीर हसन खां 'जोश मलीहाबादी'


Tuesday, September 23, 2008

दैर-ओ-हरम

अपने दो अशआर की ज़हमत दे रहा हूँ, मुलाहिज़ा हो -


वसी-उल-क़ल्ब ही जाने है क्या राज़े-निहां इसका,

हरम में कौन बसता है ठिकाना दैर है किसका।



ज़रा ये फ़र्क़ देखो अहल-ए-ज़ाहिर और बातिन में,

सज़ा-ए-मौत जो उसकी, उरूसी जश्न है इसका ।

- हर्ष

Sunday, September 14, 2008

ये बता कि कारवाँ क्यूं लुटा

गोधरा से दिल्ली तक

अपने दर्द का कुछ हिस्सा आपकी खिदमत में पेश है -


आसें टूटतीं अपनी, न जलता आशियाँ अपना,

न होता सैद-अफ़्गन गर ये ज़ालिम बाग़बां अपना।


न जाने कुफ्र-ओ-ईमां की कहाँ जाकर हदें छूटें,

चलो ढूँढें नया कोई अमीर-ए-कारवाँ अपना।


मज़ाक़-ए-काफिरी है अब, शगुफ्ता ज़िंदगी है अब,

कहाँ लाया है दानिस्ता, हमें दर्द-ए-निहां अपना।


मोअज़्ज़िन इक अज़ां पे खींच लाया भीड़ लोगों की,

यहाँ हम ढूंढते फिरते रहे इक हमज़बाँ अपना।


चमन में रंग-ओ-बू-ए-गुल ये क्या इतराते फिरते हैं,

चले आओ ज़रा लेकर जमाल-ए-बेकराँ अपना।


(सैद-अफ़्गन - शिकारी। बाग़बां - बाग़ का रखवाला, माली। कुफ्र-ओ-इमाँ - आस्तिकता और नास्तिकता , हदें छूटें - सीमाओं से बाहर आयें. अमीर-ए-कारवाँ - नेतृत्व करने वाला, कारवाँ की अगुवाई करने वाला। मज़ाक़-ए-काफिरी - नास्तिकता की ओर रुझान । शगुफ्ता - प्रफुल्लित। दानिस्ता - समझ बूझ कर । दर्द-ए-निहां - आन्तरिक पीड़ा। मोअज़्ज़िन - मस्जिद में अजां देने वाला जिसे सुन कर लोग नमाज़ पढ़ने आते हैं। हमज़बाँ - अपनी भाषा समझने वाला। रंग-ओ-बू-ए-गुल - फूलों के अलग अलग रंग और खु़शबू। जमाल-ए-बेकराँ - निस्सीम सौंदर्य )

इस ग़ज़ल का पहला शेर गोधरा काण्ड के वक़्त जनाब नरेन्द्र मोदी की नज़र था जो उस सन्दर्भ में समझा जा सकता है। अपने अन्तिम शेर की प्रेरणा मुझे डॉ राधाकृष्णन के एक लेख से मिली थी, लेकिन वो फिर कभी....

- हर्ष

Friday, September 12, 2008

जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं?

आज के 'Mumbai Mirror' की ज़रा इस ख़बर पर ग़ौर फरमाएं
(धन्य हैं ऐसे माता-पिता)

"An eight-year-old's diksha, which basically means renunciation and is an age-old practice followed by the Jain community, has pitted tradition against modern laws. Observing that the practice of minors being initiated into diksha is "as bad as the tradition Sati", the Bombay High Court on Thursday said there is an urgent need to frame guidelines on the issue।The HC made this observation while hearing an appeal filed by the child's parents who had challenged the contention of the Child Welfare Committee (CWC) that the girl, now 12, "is in need of care and protection". The division bench of justice P B Majmudar and justice Amjad Sayed observed, "No religion can allow a minor to become a sadhu. It's as bad as Sati and there should be some law to prevent minors from taking diksha. Under the provisions of law, the court is the ultimate guardian of every minor and if we do not protect the rights of this minor child, we will fail in our duty." The court appointed a four-member committee to interview the 'sadhvi'। The committee comprises prothonotry (administrative in-charge of HC) A Rodrigues, senior counsel Rajani Iyer, CWC chairperson Dr Shaila Mhatre and advocate Ravindra Parekh who will "interview the sadhviji about her decision to seek diksha"। The committee meet the "sadhviji" who is presently at a derasar (a Jain temple) in Juhu on September 1.

अब ज़रा माता-पिता की अपने वकील के ज़रिये दी गयी दलील पर भी ग़ौर करें -

Appearing on behalf of the parents, advocate Milind Sathe said, "The ritual is more than hundreds of years old. It is about sentiments and religion, and the decision to take diksha was independently taken by the child. The parents never forced her. A person who takes diksha is not allowed to come back to society. In our view, she does not need care and protection."

वकील साहब ने बच्ची से बात करने के इजलास के मशविरे को ये कह कर नामंजूर करना चाहा -

“They (साध्वी) are not allowed to interact in public "

हालांकि उन्होंने ये भी माना -

"The court may appoint a committee to interview her,” He conceded that there is a need for a law on the issue, but it cannot be decided by the legislature alone.

ये इजलास न होती तो क्या होता -

“Even the shankaracharya was a common citizen before he renounced the world। He too had to come to court,” the judges said referring to the head of the Kanchi Mutt in Tamil Nadu who is named in a murder case. “We understand the sentiments of religion, but it is important to protect her interests also। After 20 years, she must not repent her decision. The court cannot be a silent spectator to such an issue ignoring the fact that the girl child is allowed to renounce the world at a tender age. We feel an eight-year-old is not able to take such a big decision.” The judges said once the committee submits its report, they may call the “sadhvi” for an in-chamber interview “if the report does not satisfy them”.

अब ज़रा इस क़िस्से की पृष्ठभूमि (background) पर ग़ौर करें -

In March 2004, the diksha ceremony in which the eight-year-old renounced the material world had ruffled child rights activists। The matter was brought to the attention of CWC by Childline, an NGO. In July 2006, the HC had directed CWC to find whether she had taken diksha voluntarily or was forced to do so. The CWC said in a report that the young girl needed care.

इसके बाद बच्ची के वालिदैन (माता-पिता) CWC के नज़रिए से मुतफ़्फ़िक़ (सहमत) न हुए। लिहाज़ा उन्होंने बच्ची को साध्वी बनाने की जद्द-ओ-जहद (अथक परिश्रम) के ज़ेर-ऐ-असर (फलस्वरूप) इजलास का दरवाज़ा दोबारा खटखटाया -

Later, the girl's parents challenged the CWC's order in the HC, which granted a stay on the CWC order. Thursday's hearing was in connection with the parents' challenge to the CWC's finding.

आठ बरस की बच्ची, जिसे शायद कोई भी चहचहाता हुआ देखना चाहेगा उसका हिन्दोस्तान जैसे मुल्क में ये हश्र है। इस ख़बर के मुत्तालिक़ अपने एक शेर की ज़हमत देना चाहूंगा। मुलाहिज़ा हो-

न जाने कुफ्र-ओ-इमाँ की कहाँ जाकर हदें छूटें,
चलो ढूँढें नया कोई अमीर-ए-कारवाँ अपना।

(कुफ्र-ओ-इमाँ - आस्तिकता और नास्तिकता , हदें छूटें - सीमाओं से बाहर आयें , अमीर-ऐ-कारवाँ - जुलूस का मुखिया )

Wednesday, September 10, 2008

जिब्रील और इब्लीस,

इस्लाम में जिब्रील एक फ़रिश्ते हैं जो रहमत यानी अनुकम्पा देने वाले हैं और इब्लीस जो पहले तो फ़रिश्ता थे लेकिन ख़ुदा की बात न मानने (अवज्ञा) की वजह से बतौर सज़ा (दंड स्वरुप) शैतान क़रार कर दिए गए। माना जाता है कि यही इब्लीस लोगों से ग़लत और काफिराना (दुष्कर्म) काम करवाते हैं। मुलाहिज़ा हो इस क़िस्से के मुत्तालिक़ (सम्बंधित) इक़बाल का नज़रिया -

जिब्रील इब्लीस से -

खो दिये इंकार से तूने मक़ामाते-बुलंद,
चश्मे-यज़्दाँ में फरिश्तों की रही क्या आबरू?

इब्लीस जिब्रील से-

देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर,
कौन तमाचे खा रहा है, तू कि मैं,

खिज्र भी बे-दस्त-ओ-पा, इलियास भी बे-दस्त-ओ-पा,
मेरे तूफाँ यम-ब-यम, दरिया-ब-दरिया, जू-ब-जू,

गर कभी खल्वत मयस्सर हो तो पूछ अल्लाह से,
क़िस्सा-ए-आदम को रंगीं कर गया किसका लहू,

मैं खटकता हूँ दिल-ए-यज़्दाँ में कांटें की तरह,
तू फ़क़त अल्लाह तू, अल्लाह तू, अल्लाह तू!

(मक़ामात-ए-बुलंद - उच्च स्थान। चश्म-ए-यज़्दाँ - ख़ुदा की नज़र में। आबरू - इज्ज़त। फ़क़त - केवल। साहिल - किनारा। रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर - अच्छाई और बुराई की जंग। खिज्र और इल्यास - वोह पैग़म्बर जो सही रास्ता दिखाते हैं। बे दस्त-ओ-पा - बिना हाथ पैर के, विवश, अपाहिज , निष्क्रिय। यम-ब-यम,दरिया-ब-दरिया,जू-ब-जू - हर नदी नाले में, हर जगह। खल्वत - अँधेरा, मुसीबतें। मयस्सर - मिले। क़िस्सा-ए-आदम - मानव कथा, लोगों का हाल। दिल-ए-यज़्दाँ - ख़ुदा के दिल में। अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू - अल्लाह वही है, वही है, वही है.)

Tuesday, September 9, 2008

बहुत मुश्किल है बंजारा मिज़ाजी, सलीक़ा चाहिए आवारगी का.

Rahul Sankrityayan - The Nomadic Messiah
राहुल सांकृत्यायन - बंजारा मसीहा

मेरी समझ में दुनिया की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है घुमक्कड़ी। घुमक्कड़ से बढ़कर व्यक्ति और समाज का कोई हितकारी नहीं हो सकता। दुनिया दुख में हो चाहे सुख में¸ सभी समय यदि सहारा पाती है तो घुमक्कड़ों की ही ओर से। प्राकृतिक आदिम मनुष्य परम घुमक्कड़ था। आधुनिक काल में घुमक्कड़ों के काम की बात कहने की आवश्यकता है¸ क्योंकि लोगों ने घुमक्कड़ों की कृतियों को चुरा के उन्हें गला फाड़–फाड़कर अपने नाम से प्रकाशित किया¸ जिससे दुनिया जानने लगी कि वस्तुत: तेली के कोल्हू के बैल ही दुनिया में सब कुछ करते हैं। आधुनिक विज्ञान में चार्ल्स डारविन का स्थान बहुत ऊँचा है। उसने प्राणियों की उत्पत्ति और मानव–वंश के विकास पर ही अद्वितीय खोज नहीं की¸ बल्कि कहना चाहिए कि सभी विज्ञानों को डारविन के प्रकाश में दिशा बदलनी पड़ी। लेकिन¸ क्या डारविन अपने महान आविष्कारों को कर सकता था¸ यदि उसने घुमक्कड़ी का व्रत न लिया होता। आदमी की घुमक्कड़ी ने बहुत बार खून की नदियाँ बहायी है¸ इसमें संदेह नहीं¸ और घुमक्कड़ों से हम हरगिज नहीं चाहेंगे कि वे खून के रास्ते को पकड़ें¸ किन्तु घुमक्कड़ों के काफले न आते जाते¸ तो सुस्त मानव जातियाँ सो जाती और पशु से ऊपर नहीं उठ पाती।
अमेरिका अधिकतर निर्जन सा पड़ा था। एशिया के कूपमंडूक को घुमक्कड़ धर्म की महिमा भूल गयी¸ इसलिए उन्होंने अमेरिका पर अपनी झंडी नहीं गाड़ी। दो शताब्दियों पहले तक आस्ट्रेलिया खाली पड़ा था। चीन -- भारत को सभ्यता का बड़ा गर्व है¸ लेकिन इनको इतनी अक्ल नहीं आयी कि जाकर वहाँ अपना झंडा गाड़ आते।

- राहुल सांकृत्यायन

इस सन्दर्भ में 'फ़िराक़' का एक शेर याद आता है -

सरज़मीन-ए-हिंद पर अक़वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़',

क़ाफिले बसते गए, हिन्दोस्तां बनता गया.

( सरज़मीन-ए-हिंद - भारत की धरती, अक़वाम-ए-आलम - दुनियाँ की विभिन्न जातियों के लोग )

- फ़िराक़ गोरखपुरी (रघुपति सहाय)

Meaning of words in the Title

मिज़ाजी - प्रकृति, स्वभाव। सलीक़ा - योग्यता, विवेक, शऊर, हुनर, तरीक़ा, तमीज़।

I believe the most important thing in this world to be traveling। There can be no one who would think better for society than a person who travels a lot. Whether the world is steeped in joy or mired in sadness, it only finds refuge in the wisdom of the travelers. Ancient Man was a great traveler. It is necessary to speak of the great contribution to human civilization by the travelers in the modern age because people stole from the writings of the great travelers of history and published their writings in their names, which led to the misconception that only frogs of the well are able to do something worthwhile in this world. Charles Darwin occupies a pivotal place in the growth of modern science. He not only carried out important and unparalleled research in the origin of species and of the human race but it could be said that all sciences had to change their direction in the light of Darwin’s contributions. But would Darwin have succeeded in his mission had he not taken the oath of voyage in his life? It is true that the spirit of travel has led to tremendous massacre in the history of human race and we would not want the travelers to indulge in massacres but it is also a fact that if the caravans of travelers did not go around the world, then the lazy human races would have slept and would not have risen above the animal world. The American continent was rather lifeless for a long time. The ostriches of Asia had forgotten the greatness of the travelers of yore, which is why they did not hoist their flag on the American continent. Till two centuries ago, Australia lay barren. India and China take great pride in their ancient civilizations but they did not enough common sense to go there and hoist their flags.

Translation by Roomy Naqvy (copyright)

Sunday, September 7, 2008

मौत ने चुपके से जाने क्या कहा, ज़िन्दगी ख़ामोश होकर रह गयी.

Death of a great modern poet 'Ahmad Faraz'

उर्दू शायरी के एक युग का अंत

ज़िन्दगी तेरी अता है तो ये जाने वाला,

तेरी बख़्शीश, तेरी देहलीज़ पे धर जायेगा।

-अहमद फ़राज़

(January 14, 1934 - August 25, 2008)

एक शेर 'फ़राज़' के नाम -

कह रहा है दरिया से समंदर का सुकूत,

जिसका जितना ज़र्फ़ है उतना वो ख़ामोश है।

( सुकूत-ख़ामोशी, ज़र्फ़-सामर्थ्य, दिमाग़, क़ाबिलियत )

- इक़बाल